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फिल्मी दुनिया को अलविदा कह चुकीं ममता कुलकर्णीं जो अब खुद का पिंडदान और तर्पण कर इस अखाड़े की महामंडलेश्वर बन गई हैं। अब उनका नया नाम श्री यामायी ममता नंद गिरि हो गया है।2019 के अपने पहले कुंभ में देश-विदेश की मीडिया में सुर्खियां बटोरने वाला किन्नर अखाड़ा 2025 के महाकुम्भ में शुक्रवार को अचानक एक बार फिर चर्चा के केंद्र में आ गया। वजह बनीं फिल्मी दुनिया को अलविदा कह चुकी ममता कुलकर्णीं जो अब खुद का पिंडदान और तर्पण कर इस अखाड़े की महामंडलेश्वर बन गई हैं। किन्नर अखाड़े की आचार्य महामंडलेश्वर डॉ. लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने उनका पट्टाभिषेक कर महामंडलेश्वर की जिम्मेदारी सौंपी। इसके साथ ममता कुलकर्णी का नाम अब श्री यामायी ममता नंद गिरि हो गया है। इससे पूर्व ममता ने किन्नर अखाड़े की संतों के साथ संगम में स्नान किया।मीडिया से बातचीत में ममता ने कहा कि मुझे कल महामंडलेश्वर बनाने की तैयारी चल रही थी लेकिन आज मुझे महाशक्ति ने आदेश दिया कि मुझे पट्टा गुरु के तौर पर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी जी को चुनना है क्योंकि वह साक्षात अर्धनारीश्वर स्वरूप हैं और मेरे लिए इससे बड़ी बात और क्या हो सकती है कि एक अर्धनारीश्वर के हाथ मेरा पट्टाभिषेक हो रहा है। कहा कि उनकी तपस्या सन 2000 से शुरु हुई थी। महामंडलेश्वर की उपाधि के लिए मेरी काफी परीक्षा ली गई। हर प्रकार के प्रश्न में मैं पास हो गई तब जाकर यह उपाधि मिली।कहा कि मेरे इस कदम से मेरे काफी प्रशंसक (फैन्स) नाराज हैं लेकिन महाकाल और महाकाली की इच्छा के आगे किसी का वश नहीं चलता है। एक सवाल के जवाब में ममता ने कहा कि संगम पहुंच कर बहुत अच्छा लग रहा है, महाकुम्भ में यह विशेष संयोग 144 साल बाद लगा है, कहा कि उन्होंने महामंडलेश्वर बनने से पूर्व तर्पण और पिंडदान कर दिया है।90 के दशक में दीं कई हिट फिल्में

20 अप्रैल 1972 को एक मराठी परिवार में जन्मीं ममता कुलकर्णी ने 1990 के दशक में बॉलीवुड पर राज किया। उन्होंने करण अर्जुन, क्रांतिवीर, क्रांतिकारी, किस्मत, तिरंगा, बाजी, बेकाबू, छुपा रुस्तम सहित कई हिट फिल्में दीं। बॉलीवुड में पहचान बनाने के बाद 2002 में वह फिल्म इंडस्ट्री से गायब हो गईं थीं। वह एक बड़े विवाद में भी घिरीं।अखाड़े में महिलाएं भी बनती हैं महामंडलेश्वर

किन्नर अखाड़े में महिलाएं भी महामंडलेश्वर बनाई जाती हैं। तीन दिन पहले अखाड़े ने दिल्ली की एक ऐसी महिला को महामंडलेश्वर की उपाधि दी थी, जिसने शादी के दो माह बाद ही खुद का पिंडदान कर संन्यास की राह पकड़ ली थी। इसी व्यवस्था के तहत ममता को यह उपाधि दी गई है।अचानक कैसे बनी महामंडलेश्वर

पट्टाभिषेक की प्रक्रिया शुरू होने से दो घंटे पहले तक किसी को इस बारे में कोई भनक नहीं थी। यहां तक कि खुद ममता कुलकर्णी ने एक वीडियो जारी कर बताया था कि वह काशी विश्वनाथ मंदिर और अयोध्या की यात्रा पर जाने के बाद महाकुंभ आएंगी और 29 जनवरी को मौनी अमावस्या के पावन अवसर पर स्नान करेंगी। फिर ऐसा क्या हुआ कि उनका प्रोग्राम बदल गया और वह काशी नहीं गईं। प्रयागराज में रुकीं तो अपना ही पिंड दान करके महामंडलेश्वर बन गईं? महामंडलेश्वर बनने के बाद मीडिया से बातचीत में ममता ने इस रहस्य का खुलासा किया।काशी विश्वनाथ के महापंडित गायब और…

ममता ने कहा कि कल तक तो यही सोच रही थी कि यहां आऊंगी और स्नान करूंगी। इसके बाद उसी तरह से यहां से चली जाऊंगी जैसे 12 साल पहले आई थी और चली गई थी। वही भी महाकुंभ था और आज भी पूर्ण कुंभ है। कहा कि आज मैंने अपनी यात्रा काशी विश्वनाथ मंदिर के लिए तय की थी। लेकिन उनके जो महापंडित हैं जिनसे मेरी बातचीत हुई थी। आज वह पंडित जी गायब हो गए। वह अचानक कैसे गायब हो गए, मैं यह समझ नहीं पा रही हूं।

 

ममता ने कहा कि मैं काशी विश्वनाथ मंदिर के पंडित के गायब होने के बारे में सोच ही रही थी कि सुबह-सुबह जगतगुरु महेंद्र आनंद गिरी महाराज, इंद्रा भारती महाराज और एक अनुयायी मेरे सामने ब्रह्मा, विष्णु, महेश के रूप में आ गए। इसके बाद मुझे आचार्य लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी जी के पास लेकर गए। मैं इनके पास जाकर इसी तरह बैठी थी, जैसे अभी बैठी हूं। तभी आदि शक्ति ने मेरे अंतर्मन ने बोला, आज शुक्रवार है। पूछा, किस बात का तुम्हें इंतजार है। तुमने जो 23 साल तक तप किया, ध्यान किया, उसका सर्टिफेकेट तो बनता ही है।किन्न्र अखाड़ा ही क्यों?

ममता ने किन्नर अखाड़ा चुनने के पीछे का कारण भी बताया। कहा कि आध्यात्म में तीन रास्ते होते हैं। वामपंथी, दक्षिण पंथी और मध्यम पंथी। किन्नर अखाड़ा मध्यम पंथी मार्ग वाला है। यहां मुझे बंधकर नहीं रहना होगा। यहां पर पूरी स्वतंत्रता है। इससे बेहतर कोई रास्ता नहीं हो सकता है। लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी की ओर इशारा करते हुए कहा कि मैं अब इनकी संस्था और सनातन के लिए जो हो सकेगा करूंगी। अभी मानव कल्याण के लिए भ्रमण करूंगी। जहां से भी कुछ कमाई करुंगी, इनकी संस्था में समर्पित करूंगी।